भगवान शिवजी को केतकी के फूल क्यों नहीं चढ़ाए जाते
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भगवान शिवजी हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। उन्हें संहारक और पुनर्सृजक के रूप में पूजा जाता है। शिवजी की पूजा में विशेष रूप से बेलपत्र, धतूरा और आक के फूल चढ़ाए जाते हैं, लेकिन केतकी के फूलों का प्रयोग वर्जित माना गया है। आइए जानें इसके पीछे की कथा और धार्मिक कारण।
केतकी फूल से जुड़ी कथा
यह कथा सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा और संहारक भगवान शिव के बीच घटी थी। एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। इस विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शिव एक अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए और ब्रह्मा और विष्णु को उसकी शुरुआत और अंत खोजने का चुनौती दी।
भगवान विष्णु ने स्तंभ के आधार की ओर यात्रा शुरू की जबकि ब्रह्मा जी ने शीर्ष की ओर। कई युगों के बाद भी, वे इस अग्नि स्तंभ का अंत नहीं खोज पाए। ब्रह्मा जी ने तब एक केतकी फूल से झूठी गवाही देने का आग्रह किया कि उसने स्तंभ के शीर्ष को देखा है।
झूठी गवाही और श्राप
केतकी फूल ने ब्रह्मा जी की बात मानी और झूठी गवाही दी। भगवान शिव इस छल से क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि उन्हें पूजा में कोई स्थान नहीं मिलेगा। साथ ही, केतकी के फूल को भी श्राप दिया गया कि वह कभी शिवजी की पूजा में प्रयुक्त नहीं होगा।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
इस घटना के बाद से केतकी के फूल को भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया है। इसे धार्मिक अनुशासन और सत्य के महत्व का प्रतीक माना जाता है। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि धर्म और पूजा में सच्चाई का महत्व कितना अधिक है।
निष्कर्ष
भगवान शिवजी को केतकी के फूल न चढ़ाने की परंपरा धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है। यह कथा हमें सच्चाई और ईमानदारी के महत्व को समझाने के साथ-साथ धर्म के प्रति सम्मान बनाए रखने की भी प्रेरणा देती है।
भगवान शिव की पूजा में उनके प्रिय वस्त्र और फूल चढ़ाकर उनकी कृपा प्राप्त करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है, और इसमें केतकी के फूल की अनुपस्थिति एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुशासन का प्रतीक है।
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